Wednesday, August 29, 2012

नियमितीकरण के नाम पर एक बार फिर धोखा दे रही है दिल्ली सरकार

प्रेस वक्तव्य
नियमितीकरण के नाम पर एक बार फिर धोखा दे रही है दिल्ली सरकार

दिल्ली की गरीब पर मेहनतकश व स्वाभिमानी जनता की भावना से खिलवाड़ कर रही है शीला दीक्षित

२९ अगस्त २०१२, दिल्ली

माननीय मुख्यमंत्री जिस प्रकार 917 कालोनी को नियमित करने का ढिंढोरा पीट रही है, वो पहले दिल्ली की जनता को जवाब दे की इस खोखले नियमितकरण के दिखावे से इस कॉलोनियों में रहने वाली जनता को आखिर क्या मिलेगा?
मै माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित से मांग करती हूँ की वो निम्नलिखित सभी सवालो का जवाब दिल्ली की जनता खास तौर पर इन कॉलोनियों में रहने वाले नागरिको को दे:-
  1. क्या इन कॉलोनियो में रहने वाले निवासी अब अपने घर का नक्शा पास करवा सकेंगे?
  2. क्या इन कॉलोनियो के निवासी अब कानूनी तौर पर रजिस्ट्री करा कर जमीन व मकान की खरीद फरोख्त कर सकेंगे?


  3. क्या बैंक व अन्य आर्थिक क्षेत्र में काम कर रही संस्थाएं अब इन कॉलोनियों में मकान, जमीन व दुकानों को खरीदने व निर्माण करने ले लिए लोन देना शुरू कर देंगी?
  4. क्या दिल्ली सरकार इन सभी 917 कॉलोनियों का "स्टेटस पेपर" सार्वजनिक करेगी?


दिल्ली की जनता अब समझ चुकी है कि चुनावो से पहले हर बार शीला दीक्षित इसी प्रकार अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाली गरीब जनता की भावना से खिलवाड़ करती है. जिस प्रकार पिछले चुनाव से पहले श्रीमती सोनिया गाँधी जी के द्वारा "प्रोविजनल सर्टिफिकेट" देकर छलावा किया गया था वो दिल्ली की जनता अभी भूली नहीं है.

"मैं शीला दीक्षित जी को बताना चाहती हूँ की लकड़ी की हांडी बार बार नहीं चढ़ती, दिल्ली की जनता के सामने उनका व इस सरकार का असली चेहरा सामने आ चुका है. "

इस प्रकार दिखावे व छलावे की राजनीती करने से बेहतर है श्रीमती शीला दीक्षित इन अनधिकृत कॉलोनियो में बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करवाए. यहाँ के निवासी जो मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है उनको पानी, बिजली, सीवर, सड़क, सामुदायिक भवन, विद्यालय, चिकित्सालय जैसी मूल सुविधाओं की आवश्यकता है, उन्हें आवश्यकता है कि उनकी जमीन व मकान की खरीद फरोख्त पक्की हो, उन्हें आवश्यकता है कि उनके मकानों के नक़्शे कानूनी तौर पर पास किये जाये.
अगर शीला सरकार 2008 में जनता से किये अपने वादे को लेकर गंभीर होती तो आज इन सभी कॉलोनियों के निवासियों को बुनियादी हक़ मिल चुका होता. लेकिन लगता है कि शीला दीक्षित जी ये मान कर बैठी थी कि वो दिल्ली की जनता को एक बार फिर कालोनी नियमितीकरण  का चुनावी झुनझुना पकड़ा कर ही काम चला लेंगी.


अनधिकृत कॉलोनियों में रह रहे दिल्ली के लाखो नागरिक सभी बुनियादी सुविधायों के हक़दार है, ये सभी नागरिक गरिमापूर्ण जीवन यापन के लिए संघर्षरत है, रात दिन मेहनत करके अपना व अपने परिवार का भरण पोषण कर पा रहे है.

मैं एक बार फिर माननीय मुख्यमंत्री महोदया से हाथ जोड़ कर निवेदन करुँगी कि "अपने राजनीतिक फायदे के लिए दिल्ली की गरीब जनता की भावनाओ से खिलवाड़ ना करे. मंहगाई और भ्रष्टाचार से जूझ रहे आम आदमी के साथ किया गया ये खिलवाड़ उनको बहुत मंहगा पड़ सकता है. "

मुख्यमंत्री जी का व्यवहार देख कर मुझे दिनकर कि ये पंक्तियाँ याद आती है :-

मानो,जनता हो फूल जिसे अहसास नहीं,

जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
  या कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

मैं शीला दीक्षित जी को याद दिलाना चाहती हूँ कि
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;


शीला जी, दिल्ली कि जनता कि भावनाओ से खिलवाड़ बंद करे व अनधिकृत कॉलोनियों में रह रहे आम नागरिको को किस प्रकार बुनियादी सुविधाएँ मिल सकती है उसका उपाय करे. कॉलोनियों के नियमितीकरण का ये छलावा केवल एक चुनावी स्टंट है.

- डॉ अन्नपूर्णा मिश्रा