Tuesday, February 26, 2013

विज्ञापन मामले में निगम की जांच रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण, जनता से धोखा : महापौर

विज्ञापन मामले में निगम की जांच रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण, जनता से धोखा : महापौर 

सम्बंधित अधिकारीयों को बचाने का प्रयास दु:खद एवं हास्यास्पद 
 

26 फ़रवरी 2013, पूर्वी दिल्ली

पूर्वी दिल्ली नगर निगम की महापौर डॉ अन्नपूर्णा  मिश्र ने आज विज्ञापन विभाग में अनियमितताओं के सम्बन्ध में निगम अधिकारीयों द्वारा की गयी जांच को पक्षपातपूर्ण व जनता से धोखा बताया। महापौर महोदया  ने कहा कि ये बहुत निराशाजनक व दुखद है कि जांच अधिकारी श्री जे बी सिंह ने जांच के माध्यम से न केवल सम्बंधित अधिकारीयों को बचाने का प्रयास किया है बल्कि अपनी जांच में वह "औचक दौरे" के दौरान रंगे हाथो पकडे गए अधिकारीयों की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे है।

महापौर महोदया ने कहा कि जांच के दौरान न केवल तथ्यों की अनदेखी की गयी व उन्हें छुपाया गया बल्कि निष्पक्ष जांच से सम्बंधित सभी सिद्धांतो व नियमो को भी खुलेआम ताक पर रख दिया गया।

डॉ मिश्रा  ने कहा कि इस प्रकार की रिपोर्ट क्षेत्र की जनता, मीडिया, जनप्रतिनिधियों, आयुक्त, निदेशक, माननीय उपराज्यपाल और उन सभी पक्षों को एक धोखा देने का प्रयास है जो इस मामले में हो रही प्रगति को ध्यानपूर्वक देख रहे है।    

उल्लेखनीय है कि 8 जनवरी 2013 को महापौर महोदया द्वारा किये गए औचक दौरे के दौरान निगम के विज्ञापन विभाग में बड़ी अनियमितताएं पाई गयी थी व महापौर महोदया  ने सम्बंधित अधिकारीयों के निलंबन व निष्पक्ष जांच की मांग निगमायुक्त महोदय से की थी। औचक दौरे के दौरान पूर्वी दिल्ली निगम के छोटे से क्षेत्र में ही सैकड़ो अनधिकृत युनिपोल लगे हुए पाए गए थे.

निगम द्वारा महापौर महोदया  को दी गयी जांच रिपोर्ट के सम्बन्ध में महापौर महोदया  ने कई प्रश्न खड़े किये है।

१. उन्होंने पूछा है कि आखिर क्या कारण थे कि निगम के पास अपना सतर्कता विभाग होते हुए भी इस मामले की जांच एक ऐसे अधिकारी से करायी गयी जो स्वयं अपनी जांच रिपोर्ट में लिख रहे है कि उनके पास त्रिपुरा चुनाव की  होने के कारन यह जांच जल्दबाजी में पूरी करनी पड़ी। आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि निगम के सतर्कता विभाग के पास आवश्यक कौशल, योग्यता व अनुभव होते हुए भी इस मामले की जांच ऐसे अधिकारी को सौपी गयी जो इस कार्य के लिए केवल "पार्ट टाइम" उपलब्ध थे.

२. डॉ मिश्रा ने कहा कि ऐसे अधिकारी को जांच की जिम्मेदारी देना जिसका सम्बंधित अधिकारीयों से करीबी कामकाजी रिश्ता हो, न केवल निष्पक्ष जांच के सिद्धांतो व नियमो के खिलाफ है बल्कि इस मामले में जांच के पक्षपातपूर्ण होने के पीछे यह एक महत्वपूर्ण कारण है.

३. डॉ मिश्रा ने कहा कि अपनी रिपोर्ट में जिस प्रकार श्री जे बी सिंह ने विज्ञापन विभाग के सम्बंधित अधिकारियो के कामकाज की तारीफ की है व विज्ञापन विभाग में हुए कार्यो का बखान किया है उससे लगता है कि जांच अधिकारी यह भूल गए थे कि उनको अवैध युनिपोल ले मामले की जांच की जिम्मेदारी दी गयी थी नाकि साल भर के कार्यो की उपलब्धता रिपोर्ट बनाने की। उन्होंने कहा कि यहाँ पर मैं यह भी बताना चाहती हूँ कि पिछले दस महीनो में निगम के सभी विभागों में कार्यकुशलता बेहतर हुयी है और विज्ञापन विभाग कोई अपवाद नहीं है परन्तु इसका अर्थ ये नहीं कि लापरवाही व भ्रष्टाचार करने की छूट दे दी जाये।

४. इस जांच रिपोर्ट की सबसे हैरान करने वाला पक्ष यह है कि मेरे द्वारा किया गए औचक दौरे के अगले दिन उन्ही अधिकारीयों को निरिक्षण की जिम्मेदारी दी गयी जिनके खिलाफ जांच की मांग की गयी थि.

५. जांच रिपोर्ट के अनुसार जिन पांच अधिकारीयों के निलंबन की मांग की गयी थी उन्ही में से चार को निरिक्षण के लिए भेज गया और इस निरिक्षण का आदेश और किसी ने नहीं बल्कि सूची में शामिल पांचवे अधिकारी के द्वारा ही दिया गया। यह बहुत ही हास्यास्पद है की जांच अधिकारी श्री जे बी सिंह ने इन्ही अधिकारीयों द्वारा किये गए निरिक्षण को प्रमाणिक मानते हुए लिखा है कि निरिक्षण के दौरान केवल ६ अवैध युनिपोल पाए गये. आखिर श्री जे बी सिंह इस निरिक्षण से और क्या आशा कर रहे थे?

६. इस प्रकार की जांच सभी सिद्धांतो व नियमो के विरुद्ध है और इसे कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता।  

७. यह बड़ा ही हैरान करने वाला विषय है कि जांच अधिकारी श्री जे बी सिंह ने पूरी जांच केवल उन्ही अधिकारीयों के द्वारा दिए गए तथ्यों के आधार पर पूरी की जिनके खिलाफ जांच की जा रही थी, पूरी जांच के दौरान जांच अधिकारी ने एक बार भी औचक दौरे को कवर करने वाले मीडिया व पत्रकारों अथव उस क्षेत्र विशेष के जनप्रतिनिधियों से बात करने की जरूरत भी नहीं समझी।

८. जांच रिपोर्ट किस प्रकार की लापरवाही से तैयार की गयी उसका एक उदहारण ये है कि श्री जे बी सिंह ने अपनी जांच में लिखा है कि निरिक्षण के दौरान केवल ६ अनधिकृत युनिपोल पाए गए। श्री सिंह ये बताना बड़ी आसानी से भूल गए कि निगम के विज्ञापन विभाग के वाणिज्य अधिकारी ने स्वयं 16 जनवरी को विभिन्न पुलिस थाना अधिकारीयों को पात्र लिखकर 10 व्यावसायिक इकाइयों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए कहा था। प्रश्न ये है कि सिर्फ छह अनधिकृत युनिपोल पाए गए तो दस संस्थानों पर मामला दर्ज करने को क्यों कहा गया? स्पष्ट है कि जांच अधिकारी ने जांच के दौरान केवल पक्षपातपूर्ण तरीके से तथ्यों का चुनाव किया बल्कि मीडिया में आये सार्वजानिक तथ्यों को भी नज़रंदाज़ किया।

 
९. 21 जनवरी को श्री जे बी सिंह ने मेरे कार्यालय में आकर मुलाकात की और 24 जनवरी को अपनी रिपोर्ट जमा करा दी। औचक दौरे के दो हफ्ते बाद जांच अधिकारी द्वारा महापौर कार्यालय में संपर्क किया गया, इस बीच सम्बंधित अधिकारीयों को तथ्यों को परकहने व स्वयं निरिक्षण करने जैसी पूरी छूट दी गयी।


१०  जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट मैं महापौर में प्रति हल्की भाषा का प्रयोग करने का प्रयास भी किया।  ऐसा लगता है कि जांच अधिकारी इस प्रकार की भाषा द्वारा मुद्दे से ध्यान भटकने का प्रयास करना चाहते है।  मेरा सवाल है कि :-
  • क्या जांच अधिकारी की नज़र में यह गंभीर विषय नहीं है?
  • क्या जांच अधिकारी अनभिज्ञ है कि महापौर के द्वारा किये गए औचक दौरे के बाद ही अनियमितताओ का खुलासा हो सका है?
  • अगर इस प्रकार का व्यवहार महापौर के साथ किया जा रहा है तो यह समझना मुश्किल नहीं कि आम आदमी को शिकायत करने व निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना करना  होगा।
     
 ११  जांच अधिकारी ने रिपोर्ट में लिखा है की यूपी सिंचाई विभाग को 20 दिसम्बर को पत्र भेज गया जबकि रिपोर्ट के साथ संलग्न प्रति 11 जनवरी को भेजे पत्र की है।

स्पष्ट है श्री जे बी सिंह का पूरा प्रयास सम्बंधित अधिकारीयों को बचाने का ही रहा।

ऐसा लगता है ये जांच रिपोर्ट एक कल्पनाशील लेखक द्वारा रहस्यमयी कथा लिखने का असफल प्रयास है जो एक दुखद अंत वाली कॉमेडी के रूप में सामने आई है।

ये जांच रिपोर्ट अनियमिताओ व भ्रष्टाचार को छुपाने का प्रयास है और भ्रष्ट अधिकारीयों के बीच गहरी सांठ गांठ को रेखांकित करता है।

ये प्रकरण एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के महत्त्व को भी रेखांकित करता है।

सबसे ज्यादा निराशाजनक बात यह है कि इस रिपोर्ट को निगम आयुक्त के द्वारा मुझे भेज गया। ऐसा लगता है आयुक्त महोदय को रिपोर्ट को पढने का समय नहीं मिला अन्यथा ये असंभव है कि रिपोर्ट की विसंगतियों और पक्षपातपूर्ण रुख का उन्हें पता नहीं चलता।

जब मैंने भ्रष्टाचार को जनता के सामने लाने  की इस मुहीम की शुरुआत की तभी मुझे अंदाज़ा था कि यह एक मुश्किल और  लड़ाई है परन्तु एक निष्पक्ष जांच कराना भी इतना मुश्किल हो जायेगा यह मैंने नहीं सोचा था।

मैं निगमायुक्त से अपील करती हूँ कि इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करे।
  
अब यह मामला निगमायुक्त, निदेशक महोदय, माननीय उपराज्यपाल, मीडिया व जनता की अदालत में है। 

सम्बंधित अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही व पूरे मामले की निष्पक्ष जांच ही एक मात्र रास्ता है और इस विषय पर कोई समझौता नहीं किया जायेगा।   

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